गुदा मार्ग से बहुत-से मल का बार-बार परित्याग होना ‘अतिसार’ कहलाता है। इस रोग में मल पतला होकर बार-बार बड़ी मात्रा में आता है। जब खाया गया भोजन आमाशय पचा नहीं पाता है, तब वह अनपचे भोजन के साथ पतले दस्त आते हैं। इसी को अतिसार कहते हैं। ग्रामीणांचलों में इसको पेट झड़ना कहते हैं। अंग्रेजी भाषा में इसको डायरिया कहा जाता है। तीव्र डायरिया (एक्यूट डायरिया) में मल की संख्या बहुत अधिक हो जाती है तथा यह बहुत पतला होता है। इस प्रकार बार-बार आने वाले दस्तों को डायरिया कहते हैं। डायरिया अचानक होकर 1 या 2 दिन रहता है। इसमें रोगी एक दिन में 3 से अधिक बार दस्त जाता है। जब कोष्ठ में अधिक मल संचय होता है, तो यह अतिसार द्वारा बाहर निकलता है। अतिसार रोग प्रायः आमाशय से सम्बन्धित विकृतियों के परिणाम हुआ करता है। भोजनोपरान्त पतले दस्त आना कई रोगियों में पायी जाने वाली प्रथम अवस्था है। अस्तु ! अतिसार का भले ही कोई भी कारण हो, भोजनोपरान्त दस्त अधिक आते हैं, जो बबराहट में और अधिक बढ़ जाते हैं। यह रोग मुख्यतया बच्चों की मृत्यु का मुख्य कारण है। यह रोग 5 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों को अधिक प्रभावित करके उनमें निर्जलीकरण/डिहाइड्रेशन कर देता है। अपने देश में आजकल यह रोग बहुतायत से फैलता है। ग्रामीणांचलों में क्वालीफाइड चिकित्सकों के अभाव के कारण इस रोग से पीड़ित बहुत-से बच्चे अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
रोग के प्रमुख कारण
संक्रामक/इन्फेक्शन्स Infections – ई० कोलाई, विब्रियो कोलरी, विब्रियो पैराहीमोलिटिक्स, शिगेला बैक्टीरिया, साल्मोनिलीग्रुप, क्लोस्ट्रीडियाग्ग्रुप, स्टैफाइलो- कोक्कस, ओरियस, बैसिलस सिरियस, यरसीनिया एण्टीरोलिटिका तथा कैमपाइलोबैक्टर जिजुनी
वाइरल (Viral) – रोटावायरस एवं अन्य वायरस ।
प्रोटोजोआल (Protozoal) – ई० हिस्टोलीटिका, जियार्डिया लैम्बली।
हैलमिन्थिक (Helminthic) – ट्राइचुरिस ट्राईचुरा, स्ट्रॉगीलाइट्स स्टरकोएलिस।
बिना/गैर संक्रामक (Non-Infections) – दूषित भोजन व जल, अजीर्ण/पाचन तन्त्र में दोष, मानसिक तनाव, भय या शोक, फिकल इन्फेक्शन से उत्पन्न डायरिया, ओषधियों के सेवन से दुष्परिणामस्वरूप उत्पन्न (कोलीनर्जिक एजेण्ट्स, ब्राड स्पेक्ट्रम एण्टी बायोटिक्स, मैग्नेशियम सहित एण्डासिड्स) डायरिया।
स्मरण रहे कि बैक्टीरिया व वायरस प्रमुखतया दो प्रकार से दस्त उत्पन्न करते हैं-1. म्यूकोजा को हानि पहुंचाकर, 2. आंतों में अधिक पानी बढ़ाकर तथा उसको गति को तेज करके।
अन्य कारण
- पाचन संस्थान के दोष, आमाशयिक रसों का कम होना अथवा बिल्कुल न बनना, दूषित मद्य का सेवन, जठर-ग्रहणी सम्मिलन (Gastojejunostomy) नामक शल्य कर्म के उपरान्त भी अतिसार होता है। यूरीमिया, अवटु अति सक्रियता (हाइपर थायरोडिज्म Hyper Thyroidism) आदि, आमाशय में कृमि, अर्श, ग्रहणी, पाचन शक्ति से अधिक खाना तथा विरेचक/जुलाब वाली ओषधि ।
- आन्त्र की गतियों को बढ़ाने वाले यान्त्रिक (मैकेनिकल Mechanical) और रासायनिक (केमिकल Chemical) पदार्थों का भोजन में अधिक मात्रा में होना अतिसार का सबसे बड़ा कारण है।
रोग के प्रमुख लक्षण/चिह्न
रोगी को बार-बार पतले दस्त आते हैं, पेट में भारीपन व गुड़गुड़ाहट, पेट में मरोड़, कभी-कभी किसी-किसी रोगी को वमन भी हो सकती है। कभी-कभी दस्त के साथ रक्त भी आता है तथा उसमें आंव भी होती है। पेट को दबाने पर दर्द होता है, पेट का दर्द, मल त्याग अथवा गैस (वायु) निकलने से आराम। रोगी को ठण्डे पसीने आना और त्वचा ठण्डी होना तथा रोगी को थकान व बेहोशी भी हो सकती है। रोगी का शारीरिक भार (वजन) कम हो जाता है। भय अथवा चिन्ताग्रस्त होने पर भी रोगी बार-बार मल त्याग हेतु जाता है। तीव्र डायरिया रोग में रोगी में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) मिलती है। रोगी को प्यास व अरुचि का कष्ट रहता है। जी मिचलाना, जीभ सूखी, लाल व पीली, रोगी की छोटी आंत में विकार होने पर नाभि के चारों ओर वेदना की अनुभूति, तीव्रातिसार में उदर के सम्पूर्ण अधोभाग में शौच जाने से कुछ ही समय पहले वेदना होना व बेचैनी। उदर कठोर तथा स्पर्शासहिष्णु, कभी-कभी अत्यधिक कृशता (Emaciation) इत्यादि ।
रोग की पहचान
दस्त से पहले धीमे-धीमे/मीठे-मीठे दर्द की अनुभूति, पेट में गुड़गुड़ाहट, अफारा, दस्त पतले तथा बार-बार आना, प्यास की अधिकता, कमजोरी, उदासी, आलस्य और पीड़ा आदि कष्ट होने से इस रोग की सरलतापूर्वक पहचान हो जाती है। रोगी के उदर प्रदेश को दबाने पर दर्द बढ़ता है और साथ ही मितली आती है तथा वमन होती है।
जांच/इन्वेस्टीगेशन्स Investigations
दस्त की सूक्ष्मदर्शी यन्त्र द्वारा जांच करके) रोग के कारण पता लगायें, मल का कल्चर, बच्चों में रेक्टल स्वेब (गुदा पोंछन) की माइक्रोस्कोप द्वारा जांच, रक्त जांच (ब्लड टेस्ट) TLC, DLC (टोटल ल्यूकोसाइट काउण्ट, डिफ्रेन्शियल ल्यूकोसाइट काउण्ट), सीरम इलेक्ट्रोलाइट्स, सीरम, यूरिया व क्रिएटीन।
रोग का परिणाम
इस रोग से पीड़ित रोगी को समय पर समुचित चिकित्सा आवश्यक है। इससे रोगी पूर्णरूपेण ठीक/आराम हो जाता है। समुचित चिकित्सा व्यवस्था के अभाव में रोगी की दशा बिगड़ जाती है तथा रोगी में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी के कारण मृत्यु भी हो सकती है। हालांकि वर्तमान में नयी-नयी पेटेण्ट ओषधियों के प्रयोग से रोगी का जीवन बचाया जा सकता है, किन्तु सावधानीपूर्वक पूरे समय चिकित्सा कार्य आवश्यक है।
दुर्दम व्याधियों के परिणामस्वरूप होने वाला अतिसार कृच्छ्र साध्य अथवा असाध्य होता है। भोजनोपरान्त तथा शोकातिसार प्रायः बनी रहने वाली अवस्था है, किन्तु इनमें रोगी दुर्बल नहीं होता है।
चिकित्सा
चिकित्सा विधि
री-हाईड्रेशन (Rehydration) – कम व सामान्य पानी की कमी में रोगी
को ‘जीवनरक्षक घोल’ का सेवन कराने से ही रोगी ठीक हो सकता है, किन्तु अति तीव्र डिहाईड्रेशन (पानी की कमी/निर्जलीकरण) में आरम्भ से ही शिरागत (I/V इण्ट्रावीनस) ड्रिप द्वारा लवण, ग्लूकोज व सैलाइन देना चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन W.H.O., यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा निर्धारित जीवनरक्षक घोल (ओ०आर०एस०) की मात्रा 1 लिटर पानी में-
ग्लूकोज 20 ग्राम, सोडियम क्लोराइड 3-5 ग्राम, सोडियम बाइकार्बोनेट 2.5 ग्राम, पोटाशियम क्लोराइड 1-5 ग्राम।
ग्लूकोज और अमीनो एसिड (Amino Acid) पानी व इलेक्ट्रोलाइट्स के अवशोषण में सहायता करते हैं।
स्मरण रहे कि इस रोग की मुख्य चिकित्सा डिहाईड्रेशन को ठीक करना ही है।
अतिसार रोग को ठीक/आराम करने में चावल का अत्यन्त लाभकर उपयोग हो सकता है। चावल पचने के बाद रोगी को ग्लूकोज व अमीनो एसिड पूर्ति में बहुत सहायता देता है। चावल का पाउडर पानी में घोलकर (कांजी) रोगी को सेवन कराने से दस्त में आराम आ जाता है। चावल की कांजी जीवनरक्षक घोल से भी अधिक उपयोगी है। रोगी को इसके प्रयोग/सेवन से स्टॉर्च के रूप में ग्लूकोज व प्रोटीन मुख्यतया ग्लाइसिन (Glycine) भरपूर मात्रा में मिलते हैं।
नीचे लिखी विधि द्वारा रोगी को ओरल री-हाईड्रेशन करायें।
पके चावल अथवा पका पाउडर (चावल का)
30 ग्राम
नमक
आधा चम्मच
पोटाशियम (नारियल पानी अथवा जूस
या वेजीटेबल सूप)
100-200 मि०लि०
उबला हुआ पानी
1000 मि०लि०
यह घोल रोगी के मूत्र त्याग के अनुसार देना चाहिए। जब तक रोगी को खुलकर मूत्र त्याग न हो जाये, तब तक इसको देते रहना चाहिए। स्मरण रहे कि मुख के द्वारा ही ‘ओरल री-हाईड्रेशन सोल्यूशन’ सेवन कराना हितकर रहता है। यदि रोगी मुख द्वारा ग्रहण न कर सके, तो नाक द्वारा एक ट्यूब उसके पेट में डालकर 100 से 200 मि०लि० घोल प्रत्येक घण्टे में देना चाहिए।
री-हाईड्रेशन चिकित्सा
डिहाईड्रेशन प्रकार मात्रा वजन के अनुसार समय
हल्का (Mild) ORS 50 मि०लि०/किलो 4 घण्टे के अन्दर
मध्यम (Moderate) ORS 100 मि०लि०/किलो 4 घण्टे के अन्दर
तीव्र (Severe) I/V रींगर लेक्टेट 100 मि०लि०/किलो 4 घण्टे के अन्दर
- 1 वर्ष की आयु से कम वायु वर्ग के नन्हें शिशुओं में रींगर लेक्टेट I/V द्वारा 30/40 मि०लि०/किलोग्राम प्रथम 3 घण्टों में देते हैं, तदुपरान्त मुख द्वारा ORS (ओरल री-हाईड्रेशन सोल्यूशन) 40 मि०लि०/किलोग्राम दिया जाता है।
- पोषण (न्यूट्रीशन Nutrition) – तीव्र डायरिया रोग में न्यूट्रीशन का ध्यान रखा जाना अत्यावश्यक है। जैसे ही रोगी भोजन करने योग्य हो जाता है, उसको पौष्टिक भोजन देना चाहिए, ताकि रोगी को भरपूर शक्ति मिल सके।
- रोगी को पूर्ण विश्राम (फुल रेस्ट) करायें। कम तीव्र रोग में खराब पदार्थों
के शरीर से बाहर निकल जाने से अतिसार रोग स्वतः ही आराम हो जाता है।
- यदि घर में ओ०आर०एस० का पैकेट उपलब्ध न हो, तो 1 गिलास (200 मि०लि०) पानी में 2 चम्मच चीनी अथवा ग्लूकोज और दो चुटकी भर नमक मिलाकर रोगी को देना चाहिए। घर में बनाये गये घोल के अतिरिक्त रोगी को शिकन्जी, नारियल का पानी, चावल का माण्ड, जौ का पानी, दाल का पानी और मट्ठा, केला, सेब, दही भी दिया जा सकता है।
- अधिकांशता रोगी मात्र ओरल री-हाईड्रेशन की चिकित्सा से ही ठीक हो जाते हैं, परन्तु अति तीव्र अतिसार में उचित मात्रा में ओषधियों की आवश्यकता होती है।
- मुख से रोगी को केवल तरल (Fluids) 2 घण्टे तक दें। हल्की चाय की पत्ती की एवं कम शक्कर की चाय, अरारुट, कांजी, नारियल का पानी एवं ताजे फलों का साफ-स्वच्छ रस ही दें।
- एक बार दस्त रुकने पर साफ-स्वच्छ बक्कल सहित सेब, चावल व दही (गाय का ताजा) दें।
बैक्टीरियल अतिसार में उपयोगी कुछ प्रमुख पेटेण्ट ओषधियां
- टेरामायसिन कैपूसल (Terramycin), निर्माता- फाइजर। 250 मि०ग्रा० का एक कैपसूल प्रत्येक 6-6 घण्टे के अन्तराल पर।
- नोराजिल टेबलेट (Noragyl), निर्माता- मेडले। 1 गोली दिन में 2 बार एक सप्ताह तक ।
- सिपरोजिल टेबलेट (Ciprogyl), निर्माता- मैनकाइण्ड। 1 गोली दिन में 2 बार एक सप्ताह तक ।
- सिपरोजिल फोर्ट टेबलेट (Ciprogyl Forte), निर्माता – पूर्ववत्। एक टेबलेट दिन में 2 बार प्रतिदिन 7 दिन तक ।
- सिफरान-सी०टी० टेबलेट (Cifran-C.T.), निर्माता- रैनबैक्सी। एक गोली दो बार प्रतिदिन एक सप्ताह तक ।
- सिपलोक्स-टी०जेड० टेबलेट (Ciplox-T.Z.), निर्माता- सिपला। एक गोली 2 बार प्रतिदिन निरन्तर एक सप्ताह तक।
- सिटिजोल टेबलेट (Citizol), निर्माता – एरिस्टो। 1 गोली प्रतिदिन 2 बार एक सप्ताह तक।
- एल्सिप्रो-टी०एन० टेबलेट (Alcipro-T.N.), निर्माता अल्केम। 1 गोली दिन में 2 बार प्रतिदिन ।
अतिसार रोग में उपयोगी कुछ प्रमुख पेटेण्ट ओषधियां
- एल्डियामाईसिन पेय (Aldiamycin), निर्माता – एल्केम। वयस्कों को 2
- चम्मच (10 मिलीलिटर) तथा बच्चों को 1 चम्मच (5 मि०लि०) दिन में 4-4 बार प्रतिदिन आवश्यकतानुसार 5-7 दिनों तक।
- एरिस्टोजिल एम० सस्पेंशन (Aristogyl-M Susp.), निर्माता-एरिस्टो। 2.5 से 5 मि०लि० (1/2 से 1 चम्मच) दिन में 3 बार 5 दिन तक।
- डिपेनडाल-एम० सस्पेंश्न (Dependal-M), वयस्क रोगियों के। लिए 40 मि०लि० (चाय वाले 8 चम्मच भर), एक वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए 1/2 टी स्पून फुल तथा 1 वर्ष से 5 वर्ष तक आयु वर्ग के बच्चों के लिए 2 चम्मच दवा (सभी को) दिन में 3 बार।
- फूरोक्सोन सस्पेंशन (Furoxone Susp.), निर्माता – एस०के०एफ०।। वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए 1/4 से 1/2 चम्मच। एक से चार वर्ष तक आयु वर्ग के बच्चों के लिए 1 चम्मच (5 मि०लि०), 5 वर्ष आयु वर्ग से अधिक के बच्चों के लिए 1 से 1½ चम्मच, सभी को प्रतिदिन 4 बार।
- जेटोसेक एस० (Jestosec-S), निर्माता- इथनोर। पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए 2.5 मि०लि० से 5 मि०लि० तक। 5 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के बच्चों के लिए 5 मि०लि०, सभी को आवश्यकतानुसार 3-4 बार।
- काल्टिन विद् नियोमाइसिन सीरप (Kaltin With Neomycin Syrup), निर्माता – एब्बोट। शिशुओं को 5 मि०लि० । 2-6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए 15 मि०लि० । बड़े बच्चों व वयस्क रोगियों के लिए 30 मि०लि०, सभी को दिन में 4 से 6 बार तक सेवन करायें।
- ग्रामोजिल सीरप (Gramogyl), निर्माता- स्टेनकेयर। बच्चों को 1 चम्मच 2-3 बार एवं वयस्कों के लिए 1 चम्मच 3-4 बार, सभी को प्रतिदिन एक सप्ताह तक।
- नेगाडिक्स-एम० सीरप (Negadix-M Syrup), निर्माता – सी०एफ०
- पूल०। बच्चों को 1 चम्मच 2-3 बार तथा वयस्कों के लिए 2 चम्मच 3-4 बार, सभी को 7 दिन तक।
- ग्रामोनेग पेय (Gramoneg), निर्माता- रैनबैक्सी। बच्चों को 1½ चम्मच 3-4 बार प्रतिदिन।
- डिपेनडाल-एम० टेबलेट (Dependal-M), निर्माता-एस० के०एफ०। बच्चों के लिए 1/4 से 1/2 गोली दिन में 3 बार एवं वयस्क रोगियों के लिए 1 गोली प्रतिदिन 3 बार। आवश्यकतानुसार 3 दिन से 7 दिनों तक सेवन करायें।
- फ्लेजिल-एफ० टेबलेट (Flagyl-F), निर्माता-रोनपोलैक। वयस्कों के लिए 200 या 400 मि०ग्रा० की 1-2 गोली दिन में 3 बार। आवश्यकतानुसार 2 से 5 दिन तक।
- लोमोफेन टेबलेट (Lomofen), निर्माता- आर०पी०जी०। बच्चों के लिए 1/4 से 1/2 गोली प्रत्येक 6 घण्टों पर तथा वयस्कों के लिए 2 गोली प्रत्येक 6-6 घण्टे पर डायरिया ठीक होने तक सेवन करायें।
- नोट-6 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए तथा कामला रोग (जॉण्डिस Jaundice) में प्रयोग निषेध है।
- एल्फ्यूमेट टेबलेट (Alfumet), निर्माता- अल्बर्ट-डेविड । 6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए 1/4 टेबलेट, 12 वर्ष तक आयु वर्ग के बच्चों के लिए 1/2 टेबलेट तथा वयस्कों के लिए 1-1 गोली दिन में 3-4 बार दें।
- लोमोटिल टेबलेट (Lomotil), निर्माता- टोरेण्ट। वयस्क रोगियों को 2 गोली प्रत्येक 6-6 घण्टे के अन्तराल पर डायरिया नियन्त्रण (कण्ट्रोल) न होने तक। शेष सभी उपरोक्त वर्णित ‘लोमोफेन’ गोली के सदृश ही है।
- सिप-टी०जेड० टेबलेट (Cip-T-Z), निर्माता- हेलियस । 1 गोली 2 बार प्रतिदिन एक सप्ताह तक ।
- सिपरोबिन-टी०जेड० टेबलेट (Ciprowin-T-Z), निर्माता – एलेम्बिक । 1 गोली 2 बार प्रतिदिन एक सप्ताह तक ।
- न्यूट्रोलिन-बी० कैपसूल (Nutrolin-B), निर्माता- सिपला। 1 कैपसूल 2 बार प्रतिदिन सात दिन तक।
- बीकोसूल कैपसूल (Becosule), निर्माता- फाइजर/ओमिनीप्रोट। 1 कैपसूल 2 बार प्रतिदिन 7 दिन तक।
- नोराजिल सीरप (Noragyl), निर्माता- मैनकाइण्ड। 1 चम्मच 2 बार प्रतिदिन 7 दिन तक।
- मेट्रोजिल सीरप (Metrogyl), निर्माता- यूनी क्यू०। बच्चों के लिए 1 चम्मच दिन में 2-3 बार तथा वयस्कों के लिए 2 चम्मच 3 बार प्रतिदिन एक सप्ताह तक ।
- विटकोफोल इंजेक्शन (Vitcofol), निर्माता – एफ०डी०सी०। पुराने रोग में 1-2 मि०लि० बीच में 1 दिन का अन्तराल देकर।
- इंजेक्शन मेट्रोनिडाजोल (Injection-Metronidazole), निर्माता- कोर। 1000 मि०लि०/सी०सी० शिरान्तर्गत (I/V) 3 बार प्रतिदिन 5-7 दिन तक ।
- इंजेक्शन फ्लेजिल (Injection Flagyl), निर्माता-रोनपोलैक। प्रयोग विधि-पूर्ववत् ।
- इंजेक्शन टिनीबा (Injection Tiniba), निर्माता- कैडिला एच०सी० । 400 C.C., I/V (शिरान्तर्गत) 1 बार प्रतिदिन 5-7 दिन तक।
- इंजेक्शन सिफरान (Injection Cifran), निर्माता – रैनबैक्सी। 100 C.C
- शिरान्तर्गत (I/V) 2 बार प्रतिदिन 5-7 दिन तक।
- इंजेक्शन सिपलॉक्स (Injection Ciplox), निर्माता – सिपला। 100 C.C., I/V 2 बार प्रतिदिन 5-7 दिन तक।
- इलेक्ट्रॉल पाउडर (Electral Powder), निर्माता- फेयरडील। उबालकर ठण्डा किया हुआ 1 लिटर जल में घोलकर 1-2 चम्मच की मात्रा में रोगी को बार-बार सेवन करायें।
- सावधानी-वृक्क रोग, आन्त्र अवरोध अथवा छिद्र होने पर प्रयोग न करें