नपुंसकता (Impotency)

इस रोग को ध्वजभंग एवं नामर्दी के नामों से भी जाना जाता है। सम्भोग/मैथुन कार्य में असमर्थ होना नपुंसकता कहलाती है। सैक्स स्पेशलिस्ट चिकित्सकों के मतानुसार इसकी परिभाषा निम्न प्रकार है-

  • जब पुरुष चाहकर भी स्त्री के साथ सम्भोग न कर सके, यानी समागम के समय लिंग/शिश्न के उत्थान में कमी एवं योनि के बाहर ही वीर्य स्खलन हो जानेके कारण पुरुष का स्त्री को कामतृप्त न कर पाना ‘नपुंसकता’ कहलाती है।
  • शीघ्र स्खलन के कारण अथवा लैंगिक उत्थान के अभाव में पुरुष का स्त्री को कामतृप्त/सन्तुष्ट न कर पाना नपुंसकता कहलाती है।
  • नपुंसकता के भेद/प्रकार (टाइप Types)
  • मुख्यतया नपुंसकता 2 प्रकार की होती है-
  • प्राथमिक (प्राइमरी Primary) नपुंसकता – प्राथमिक नपुंसकता में दम्पत्ति (पति-पत्नी) एक बार भी लिंगोत्थान के अभाव के कारण सम्भोग नहीं कर पाते हैं।
  • द्वितीयक (सैकेण्ड्री Secondary) नपुंसकता – द्वितीयक नपुंसकता में रोगी शुरू-शुरू में तो ठीक प्रकार से सम्भोग कर सकता है, किन्तु कुछ वर्षों के बाद लैंगिक उत्थान के अभाव के कारण वह सम्भोग नहीं कर पाता है। ऐसी दशा में रोगी बार-बार सम्भोग करने का प्रयास करता है, इस हेतु वह कामोत्तेजक फिल्में देखता है अथवा पुस्तकें पढ़ता है तथा मन में कामोत्तेजक विचार भी लाता है, ताकि लिंग में भली प्रकार कठोरता (इरेक्शन Erection) आ जाये, किन्तु प्रयास असफल रहता है। ऐसी अवस्था में पुरुष जितनी जल्दबाजी या हड़बड़ाहट दिखाता है, उसको उतनी ही अधिक परेशानी होती है। अन्ततः वह आशा ही छोड़ बैठता है तथा स्त्री के सामने सम्भोगार्थ जाने से डरने लगता है और उसका मन आत्मग्लानि से भर जाता है। उसके मन-मस्तिष्क में यह दृढ़ विचार बैठ जाता है कि अब वह कभी सम्भोग नहीं कर सकता है; क्योंकि वह नपुंसक हो गया है।
  • नमें -( जल से कक
  • रोग के प्रमुख कारण
  • बचपन में सैक्स सम्बन्धित कोई आघात ।
  • शीघ्रपतन की समस्या लम्बे समय तक रहना।
  • अण्डकोषों में जन्म से ही कोई नुक्स होना।
  • अधिक हस्तमैथुन करना।
  • कम आयु से ही अत्यधिक सैक्स में लिप्त रहना।
  • दुश्चरित्र स्त्रियां/वेश्याओं के पास अधिक जाना।
  • अत्यधिक मादक पदार्थों का सेवन करना।
  • अत्यधिक धार्मिक भावना एवं पूजा-पाठ में विश्वास करना।
  • सैक्सुअल कार्य को गन्दा समझना।
  • * मधुमेह, हृदय रोग, स्नायविक दुर्बलता, यकृत रोग आदि शारीरिक रोगों के कारण कामशक्ति घट जाती है।
  • अनुचित विधियों (हस्तमैथुन, गुदा मैथुन, पशु मैथुन आदि) से वीर्य नाश करना।
  • प्रमेह या स्वप्नदोष रोग।
  • दुर्बलता/कुपोषण ।
  • अण्डकोष का छोटा होना अथवा अण्डकोष के रोग।
  • बहुमूत्र रोग।
  • अग्निमान्द्य रोग।
  • रोग के प्रमुख लक्षण
  • रोगी द्वारा काफी प्रयास करने के बाद भी लिंग में पूरा तनाव नहीं आता है। यदि लिंग में थोड़ा-सा तनाव/कठोरता (खड़ा होना) आता भी है, तो स्त्री के पास मैथुन के लिए जाते ही खत्म हो जाता है।
  • सम्भोग की तीव्र इच्छा के होते हुए भी सम्भोग करने में असमर्थता।
  • स्त्री सहवास/मैथुन (इण्टरकोर्स) करने की शक्ति कम या पूर्ण अभाव।
  • रोगी को स्त्री के पास जाने में भय लगता है।
  • सम्भोग करने का प्रयास करते ही रोगी के शरीर से पसीना निकलना शुरू हो जाता है, सांस फूलने लगती है और हृदय/दिल घबराने लगता है।
  • रोगी का आत्मविश्वास खत्म हो जाता है, इसलिए रात-दिन वह चिन्ताग्रस्त रहने लगता है। रोगी का किसी भी कार्य में मन नहीं लगता है। उसको सदैव आत्मग्लानि रहती है।
  • रोगी एकान्तप्रिय हो जाता है।
  • रात्रि में उसको ठीक प्रकार से प्राकृत (गहरी) नींद नहीं आती है। उसके सिर व शरीर में दर्द बना रहता है।
  • रोगी में घोर निराशा आ जाती है।
  • रोगी अपनी कमजोरी छिपाने हेतु स्त्री पर बात-बात पर क्रोधित होता है तथा कभी-कभी तो मार-पीट भी करता है।
  • रोगी को कब्ज, सिर में चक्कर एवं कलेजे का धड़कना आदि लक्षण भी
  • होते हैं।
  • विशेष
  • आधुनिक चिकित्सीय अनुसन्धानों से पता चला है कि संसार में जितने पुरुष अपने को नपुंसक/नामर्द समझते हैं, उनमें से 95% नपुंसक नहीं होते हैं, वरन वह मानसिक नपुंसक होते हैं। उनकी कोई मानसिक प्राइमरी समस्या होती है, जो उनको नपुंसक बनाये रहती है। शेष 5% नपुंसक रोगी शारीरिक रोग के कारण वास्तव में नपुंसक होते हैं।
  • कुछ पुरुषों के वृषणों (Testes) में पुरुष हॉर्मोन का उत्पादन किसी कारण से बन्द हो जाता है। ऐसे पुरुषों का शिश्न छोटा रह जाता है तथा उनकी शारीरिक

रचना मदाँ जैसी ठोस नहीं बन पाती है। ये रोगी नपुंसक हो जाते हैं।

चिकित्सा

  • रोगी को यह पक्का विश्वास दिलायें कि वह अवश्य ठीक हो जायेगा।
  • चिकित्सक और रोगी में दोस्ताना सम्बन्ध होना आवश्यक है, ताकि वह खुलकर अपनी बात चिकित्सक को बता सके।
  • रोगी की पत्नी का चिकित्सा, चिकित्सक और रोगी (पति) को सहयोग करना आवश्यक ।
  • दम्पत्ति (पति-पत्नी) का मनोबल बनाये रखना।
  • दम्पत्ति को भली प्रकार जोर देकर समझायें कि सैक्स एक प्राकृतिक भूख / आवश्यकता है, यह कोई गन्दा कार्य नहीं है।
  • रोगी को बतायें कि उसमें कोई कमी नहीं है, वह भी पूर्ण मर्द है।
  • रोगी को पौष्टिक भोजन लेने का परामर्श दें। आहार में सूखे मेवे, दूध, दही, मक्खन, मलाई, घी, मुर्गी के अण्डे की जर्दी, मछली, तीतर का मांस, हरी व ताजा शाक-सब्जियां (भिण्डी, मूली, चुकन्दर, लौकी, परवल, बथुआ), प्याज, साबूदाना, अदरक, छुआरा, बादाम, चिरौंजी, तिल, नारियल, मुनक्का, किशमिश, अंगूर, आम, गाजर, अनार, ताल मखाना तथा पशुओं के अण्डकोष दें। ये उपयोगी पथ्य हैं। तम्बाकू, वायुवर्द्धक गरिष्ठ (देर से पचने वाले) पदार्थ, मूंग, मसूर की दाल, बैंगन, लाल मिर्च, गुड़, वनस्पति घी एवं इससे निर्मित पदार्थ, खटाई तथा तले-भुने खाद्य पदार्थ न दें। ये हितकर नहीं (अपथ्य) हैं।
  • इस रोग की ‘विश्वास’ ही सर्वोत्तम चिकित्सा है। रोगी को ताकत व मानसिक सन्तुष्टि के लिए टॉनिक, टेबलेट और कैपसूल दें। ऐसे में मल्टीविटामिन्स, प्रोटीन युक्त पाउडर अथवा पीने के लिए आयरन व विटामिन्स का टॉनिक दें।
  • मानसिक शक्ति के लिए ‘ट्रान्क्विलाइजर्स’ (यथा-देब्रलेट काम्पोज 5 मि०ग्रा० या टेबलेट बेलियम 5 मि०ग्रा०) रात को भोजनोपरान्त सोते समय दें।
  • कुछ रोगियों को कुछ दिनों तक परिश्रम करने, सम्भोग से परहेज करने तथा पौष्टिक भोजन करने का परामर्श दिया जाता है। इस हेतु तन्त्रिका तन्त्र (नर्वस सिस्टम) को शक्ति प्रदान करने वाला कोई भी अच्छा टॉनिक दिया जा सकता है। (इसके लिए फॉस्फोमिन Phosfomin Elixir, निर्माता-निकोल्स-परिमल का प्रयोग/सेवन हितकर रहता है।
  • जिन नपुंसक रोगियों का लिंग ठीक रूप से उत्थित न होता हो और यदि होता भी हो, तो मात्र थोड़े समय के लिए, जो स्त्री की योनि में जाते ही ढीला पड़ जाता हो और अन्दर प्रविष्ट नहीं होता हो, ऐसी दशा में लिंग की जड़ में एक रिबन बांध लेने से लिंग में निरन्तर उत्थान (इरेक्शन) बना रहता है। यहां तक कि वीर्य

स्खलन के बाद भी लिंगोत्थान में कमी नहीं आती है। इस प्रकार इस सम्भोग में पूर्ण सन्तुष्टि/आनन्द लिया जा सकता है।

समावधानी- रिबन अधिक कड़ा और अधिक ढीला न बांधे। रिबन में केवल 14½ गांठ ही लगायें (ताकि सरलतापूर्वक खोली जा सके)। रिबन को तभी बांधे,

जब लिंग में उत्थान आ जाये। विशेष-विशेषज्ञों की राय में पक्के तौर पर इससे सफलता नहीं मिलती है। * हॉर्मोन चिकित्सा – पुरुष के शरीर में टेस्टीज (Testes) में प्राकृतिक तौर

पर एक हॉर्मोन टेस्टोस्टीरोन (Testosterone) निकलता है। यह हॉर्मोन ही पुरुषोचित लक्षणों के विकास के लिए उत्तरदायी है। यही समस्त शारीरिक परिवर्तन लाता है। यह शुक्राणुओं के बनने तथा बढ़े होने में सहायक है। इसकी कमी से किशोरावस्था में आने वाले परिवर्तन नहीं आ पाते हैं और उसमें नपुंसकता के लक्षण आ जाते हैं। इसका इंजेक्शन लगाने से किशोरों में नपुंसकता दूर होती है तथा साथ ही पुरुषोचित लक्षणों का भी विकास होता है। इसके अतिरिक्त अधेड़ आयु के पुरुषों में उत्पन्न होने वाली नपुंसकता की भी इससे सफलतापूर्वक चिकित्सा की जा सकती है।

टेस्टोस्टीरोन (Testosterone) – यह ओषधि कैपसूल तथा इंजेक्शन के

रूप में विभिन्न पेटेण्ट व्यवसायिक नामों से बाजार में उपलब्ध है। इसका उपयोग जननांगों के विकार, पीयूष ग्रन्थि की निष्क्रियता, वृषण निष्क्रियता, कामेच्छा का ह्यास, तरुणावस्था में विलम्ब, अस्थि सुषिरता, शुक्राणु जनन विकार के कारण बांझपन, स्तन कैंसर, जननांग कैंसर तथा गर्भाशय रसौली में किया जाता है। इसकी मात्रा 25-50 मि०ग्रा०/1-2 सप्ताह आवश्यकतानुसार 6-8 सप्ताह तक है।

निषेध-यकृत-वृक्क विकार, हृदय निष्क्रियता, पौरुष ग्रन्थि कैंसर, पुरुषों में स्तन कैंसर, गर्भावस्था व दुग्धावस्था में इस ओषधि का प्रयोग निषेध है।

दुष्प्रभाव-त्वचा पर चकत्ते, फफोले, कालपूर्व तरुणावस्था, पौरुष स्तन वृद्धि, शुक्राणुओं की संख्या में कमी, शिश्न पीड़ा, सूजन तथा पीलिया। सावधानी

  • बच्चों में बहुत लम्बे समय देने पर लम्बाई (हाईट) कम हो सकती है।
  • उच्च रक्तचाप, हृदय विकार, यकृत विकार व वृक्क विकार के रोगियों में इस ओषधि को सावधानीपूर्वक दें।

प्रमुख पेटेण्ट व्यवसायिक योग

  • टेस्टोविरोन इंजेक्शन 1 मि०लि० (25 मि०ग्रा०) (Testoviron), निर्माता- जर्मन रेमेडीज।
  • टेस्टोविरोन डिपोट 1 मि०लि० (100 व 250 मि०ग्रा०) (Testoviron Depot) निर्माता – पूर्ववत् ।
  • एक्वाविरोन इंजेक्शन (Aquaviron), निर्माता-निकोल्स ।
  • टेस्टानॉन इंजेक्शन 1 मि०लि० (25 व 50 मि०ग्रा०) (Testanon 25 or 50), निर्माता – इन्फार ।
  • सुस्टानॉन इंजेक्शन 1 मि०लि० (100 व 250 मि०ग्रा०) (Sustanon 100 or 250), निर्माता – इन्फार।
  • नुविर कैपसूल 40 मि०ग्रा० (Nuvir), निर्माता – इण्टरकेयर ।
  • ह्यूमन कोरियोनिक गोनैडोट्रोफिन (Human Chorinic Gonadotrophin H.C.G.) – यह ओषधि इंजेक्शन के रूप में विभिन्न पेटेण्ट व्यवसायिक नामों से बाजार में उपलब्ध है। उसका उपयोग उदर वृषणता (Cryptorchism), उदर गुहा में 1 या दोनों वृषणों का रह जाना, शुक्राणुओं की संख्या में कमी, शुक्राणुओं की अनुपस्थिति, प्रौढ़ता का अधिक समय बाद आना (Delayedpuberty), सतत व तर्जित गर्भपात (Habitul and Threatened Abortion), डिम्बक्षरण बांझपन, पीत पिण्ड की कमी (Corpus Luteum Insufficiency), डिम्बोत्सर्जन प्रेरण में तथा अपरिपक्व प्रसव (Premature Labour) में किया जाता है। इसकी मात्रा उदर वृषणता में 500-1000 I.U. मांसपेशीगत (I/M) 1 दिन छोड़कर 4 महीना तक। शुक्राणुओं की संख्या में कमी अथवा हीनता में 500 I.U. मांसपेशीगत प्रतिदिन। सतत व तर्जित गर्भपात में 10,000 I.U.-I/M गर्भ का पता लगने पर, तदुपरान्त 5000 I.U.-I/M सप्ताह में 2 बार 12 सप्ताह के बाद। डिम्बक्षरण बांझपन में 10,000 I.U.-I/M, पीतपिण्ड की कमी में 5000 I.U.-I/M डिम्बोत्सर्जन के बाद ऽवें दिन, तदुपरान्त 9 वें दिन, डिम्बोत्सर्जन प्रेरण में 1000 L.U.-I/M एक दिन छोड़कर 4 माह तक।
  • निषेध – अतिसंवेदिता, पीयूष ग्रन्थि या डिम्बाशय ट्यूमर, पौरुष ग्रन्थि कैंसर, अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियों (Endocrinal Glands) के विकार, अण्डाशय क्षति, गर्भाशय की अनुपस्थिति, कालपूर्व रजोनिवृत्ति तथा डिम्बनली का अवरोध में प्रयोग निषेध है।
  • दुष्प्रभाव-जलाधिक्य सूजन, अधिक थकान, सिरदर्द, घबराहट, चिड़चिड़ापन, इंजेक्शन के स्थान पर दर्द, पुरुषों में अधिक स्तन वृद्धि तथा मानसिक अवसाद।
  • सावधानी
  • गर्भाधान (प्रेग्नेन्सी) का सत्यापन अच्छी प्रकार होना चाहिए।
  • यकृत विकार, वृक्क विकार, हृदय विकार, आधासीसी (माइग्रेन), मिरगी (एपीलेप्सी), दमा (अस्थमा), सूजन, कालपूर्व प्रौढ़ता आदि के रोगियों को यह औषधि अत्यन्त सावधानीपूर्वक दें।

प्रमुख पेटेण्ट व्यवसायिक उत्पादन

  • जेड०वाई० एच०सी०जी० 1 वायल 2000 व 5000 I.U. (Z.Y.-H.C. G.), निर्माता- कैडिला हेल्थ केयर।
  • प्रेग्निल इंजेक्शन एम्पूल 1500 व 5000 I.U./ML. (Pregnyl), निर्माता- इन्फार।
  • ओवीडेक वायल 2000 व 5000 I.U. (Ovidac), निर्माता- एलीडेक।
  • पुबरजेन एम्पूल 1000, 2000, 5000 व 10,000 I.U. (Pubergen), निर्माता – यूनिसंकायो ।
  • कोरियोमोन एम्पूल 2000 व 5000 I.U. (Chorimon), निर्माता- पैनेसिया।
  • कोरिआन एम्पूल 1000, 2000, 5000 व 10,000 I.U. (Corion), निर्माता- विन मेडीकेयर ।

मेनोट्रोफिन (Menotrophin) – यह हॉर्मोनल ओषधि इंजेक्शन के रूप में विभिन्न पेटेण्ट व्यवसायिक नामों से बाजार में उपलब्ध है। इसका उपयोग जननांगों का कम विकसित होना (Hypogonadotrophism), उदर वृषणता (Crypto- chism), शुक्राणु विकार (Asthenospermia) एवं सतत व तर्जित गर्भपात में किया जाता है।

मात्रा-इस ओषधि की मात्रा विभिन्न व्यक्तियों में अलग-अलग होती है, जिसको चिकित्सक रोगी व रोग की दशा के आधार पर निर्धारित करता है।

प्रथम विधि (Schedule-I) – निश्चित मात्रा एक दिन छोड़कर प्रथम दिन, दूसरे दिन एवं 5वें दिन ।

द्वितीय विधि (Schedule-II) – निश्चित मात्रा प्रतिदिन प्रभाव आने तक देते हैं।

निषेध – अतिसंवेदिता तथा गर्भावस्था में ओषधि प्रयोग निषेध है। सावधानी

  • रोगी को ओषधि देने से पहले स्किन टेस्ट कर लेना चाहिए।
  • पौरुष ग्रन्थि कैंसर व स्तन कैंसर के रोगियों में ओषधि प्रयोग न करें। कुछ प्रमुख पेटेण्ट उत्पादन
  • ह्यूमीगोन इंजेक्शन (एम्पूल 75 I.U.) (Humegon), निर्माता – इन्फार।
  • मेनोडेक वायल 75 व 150 मि०ग्रा० (Menodac), निर्माता – जायड्स ।
  • प्रेग्नोर्म वायल 75 व 150 I.U. (Pregnorm), निर्माता – विन मेडीकेयर।
  • गोनोट्रोप-एफ० 75 व 150 I.U. (Gonotrop-F. (FSH), निर्माता -विन मेडीकेयर।

मेस्टेरोलोन (Mesterolone) – यह संश्लेषित नर हॉर्मोन (Synthetic

Androgen) टेबलेट के रूप में विभिन्न पेटेण्ट व्यवसायिक नामों से बाजार में उपलब्ध है। इसका उपयोग नर हॉर्मोन की कमी, जननांगों का कम विकास, शुक्राणुओं की संख्या में कमी (Oligospermia), लीडिंग कोषाओं का अल्पस्राव (Deficient Secretion from Leyding Cells), जननांगों का कम विकास होना (Hypogonadism) एवं बांझपन में किया जाता है। इसकी मात्रा 25 से 50 मि०ग्रा० 2-3 बार प्रतिदिन 3 महीना तक है।

निषेध – पौरुष ग्रन्थि कैंसर, स्तन कैंसर, यकृत ट्यूमर एवं गर्भावस्था में प्रयोग निषेध है।

दुष्प्रभाव-जलाधिक्य, शर्करा और कैल्शियम की अधिकता, पुरुर्षो में अधिक स्तन वृद्धि, असाधारण तौर पर शिश्न/लिंग का खड़ा रहना (प्रियापिज्म Priapism), स्त्री में पौरुष लक्षणों का विकास एवं मासिकधर्म का दब जाना, बच्चों में कम वृद्धि होना और कालपूर्व प्रौढ़ता आदि।

सावधानी

  • इस ओषधि के सेवन काल में समय-समय पर पौरुष ग्रन्थि (प्रोस्टेट ग्लैण्ड) का परीक्षण करते रहना चाहिए।
  • दुग्धावस्था में एवं हृदय परिसंचरण के विकार (C.V.S. डिस्ऑर्डर),

मधुमेह, वृक्क विकार, यकृत विकार एवं मिरगी रोग के रोगियों में इस ओषधि का प्रयोग सावधानीपूर्वक करें।

  • बच्चों में इस ओषधि को घटी (कम) मात्रा में अत्यन्त सावधानीपूर्वक दें।

प्रमुख पेटेण्ट व्यवसायिक उत्पादन

  • प्रोविरोनम टेबलेट 25 मि०ग्रा० (Provironum), निर्माता- जर्मन रेमेडीज ।
  • रीस्टोर टेबलेट 25 मि०ग्रा० (Restore), निर्माता- ब्राउन एण्ड बुर्क।

सिल्डेनाफिल साइट्रेट (Sildenafil Citrate) – यह नपुंसकतारोधी ओषधि (एण्टी इम्पोटेन्सी ड्रग) स्तम्भन दोष इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के कारण होने वाली नपुंसकता के उपचार में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है। यह अपना कार्य लैंगिक उत्तेजना के समय ही करती है। इसके सेवन से शिश्न/लिंग में रक्त प्रवाह बढ़ जाता है, जो सम्भोग (समागम) के लिए उपयुक्त रहता है। यह ओषधि टेबलेट के रूप में विभिन्न पेटेण्ट व्यवसायिक नामों से बाजार में उपलब्ध है। इसका उपयोग शिश्न की शिथिलता के कारण होने वाली नपुंसकता में किया जाता है।

निषेध – अतिसंवेदनशीलता, नाइट्रेट ओषधियों का सेवन करने वाले रोगी, स्त्रियां, बच्चों तथा नवजात शिशुओं में इस ओषधि का प्रयोग निषेध है।

दुष्प्रभाव-पेट में दर्द व जलन, पेट भारी लगना, दस्त हो जाना, वृक्क

विकार, मितली, सिरदर्द और सिर चकराना, नाक बन्द हो जाना, त्वचा पर पह रक्तचाप में परिवर्तन, अल्सर से रक्तस्राव, मन्दाग्नि एवं चेहरा लाल पड़ता।

सावधानी

  • इस ओषधि के साथ कोई अन्य कामोत्तेजक औषधि न लें।
  • जिन रोगियों को पिछले छह महीना के अन्दर हार्ट अटैक हुआ ही, दाबी यह ओषधि अत्यन्त सावधानी से दें।
  • नेत्र विकारों में इस ओषधि का प्रयोग न करना ही श्रेयस्कर है।
  • अल्सर के रोगियों में भी इस ओषधि के प्रयोग में सावधानी रखें।
  • सिकिल सेल, ल्यूकीमिया, मल्टीपिलमायलोमा एवं अनीमिया के रोगियों में भी इस ओषधि प्रयोग में सावधानी अपेक्षित है।
  • यकृत-वृक्क विकार में एवं शिश्न के संरचनात्मक विकार वाले रोगियों में इस ओषधि को सावधानीपूर्वक दें।

प्रमुख पेटेण्ट व्यवसायिक योग

  • विगोरा 25, 50 व 100 मि०ग्रा० टेबलेट (Vigora), निर्माता-जर्मन रेमेडीज।
  • अल्सीगरा 25 व 50 मि०ग्रा० टेबलेट (Alsigra), निर्माता – अलेम्बिक।
  • एण्ड्रोज 25, 50 व 100 मि०ग्रा० टेबलेट (Androz), निर्माता-टोरेण्ट।
  • कैवरटा 25, 50 व 100 मि०ग्रा० टेबलेट (Caverta), निर्माता – रैनबैक्सी।
  • एन्थूसिया 50 व 100 मि०ग्रा० टेबलेट (Enthusia), निर्माता-लूपिन।
  • इरीक्स 25, 50 व 100 मि०ग्रा० टेबलेट (Erix), निर्माता-यूनिकेम।
  • इरेक 50 मि०ग्रा० टेबलेट (Erec), निर्माता – पैनजोन।
  • जून 25, 50 व 100 मि०ग्रा० टेबलेट (Juan), निर्माता- कैडिला।
  • मेनफोर्स 50 व 100 मि०ग्रा० टेबलेट (Manforce), निर्माता – मैनकाइण्ड।
  • नाइण्टी-ई० 50 मि०ग्रा० टेबलेट (90-E.), निर्माता – खण्डेलवाल ।
  • पेनेग्रा 25, 50 व 100 मि०ग्रा० टेबलेट (Penegra), निर्माता-जायड्स।
  • सिलाग्रा 25, 50 व 100 मि०ग्रा० टेबलेट (Silagra), निर्माता- सिपला।

अन्य उपयोगी ओषधियां

  • हिमकोलीन क्रीम (Himcolin Cream), निर्माता- हिमायल ड्रग्स। लिंग पर रात्रि को सोते समय हल्के-हल्के मालिश करें।
  • काइनेटोन सीरप (Kinetone), निर्माता- अब्बोट । 2-3 चम्मच दिन में 1-2 बार भोजन से पहले लें।
  • रिवाइटल सीरप (Revital), निर्माता – रैनबैक्सी। 10 मि०लि० (2 चाय वाले चम्मच-भर) दवा प्रतिदिन नाश्ता/भोजन के बाद लें।

नियोगाडीन इलिक्जिर (Neogadine Elixir), निर्माता – रेप्टाकोस । 2-2 चम्मच दिन में 3 बार लें।

  • लिंग मोटा बनाने के लिए – असली शहद, कबूतर की बीट और सेंधा

नमक- प्रत्येक को समान मात्रा में लेकर व भली प्रकार मिलाकर पानी में पीसकर शिश्नमुण्ड/सुपारी को छोड़कर शेष लिंग पर लेप करने से शिश्न मोटा होता है

चेतावनी: दवाओं का सेवन केवल डॉक्टर की देखरेख में करें

दवाओं का उपयोग करते समय विशेष सतर्कता बरतना आवश्यक है। बिना डॉक्टर की सलाह और देखरेख के दवाओं का सेवन करना आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। दवाओं के अनुचित उपयोग से गंभीर दुष्प्रभाव, एलर्जी, या अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

महत्वपूर्ण निर्देश:

  1. डॉक्टर की सलाह:
    • कोई भी दवा शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
    • डॉक्टर आपके स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार सही दवा और उसकी खुराक बताते हैं।
  2. स्व-चिकित्सा से बचें:
    • बिना विशेषज्ञ की सलाह के दवा का उपयोग न करें।
    • दूसरों द्वारा सुझाई गई दवा अपने लिए उपयोग न करें।
  3. साइड इफेक्ट्स का जोखिम:
    • हर दवा के कुछ संभावित दुष्प्रभाव होते हैं।
    • बिना परामर्श के दवा लेने से ये दुष्प्रभाव खतरनाक हो सकते हैं।
  4. गंभीर स्थितियां:
    • यदि दवा के सेवन से कोई परेशानी महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
    • गलत दवा का सेवन गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
  5. संवेदनशील समूह:
    • बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
    • इन समूहों में दवा के दुष्प्रभाव ज्यादा हो सकते हैं।

हमारी जिम्मेदारी:

हमारी यह स्पष्ट नीति है कि दवाओं का उपयोग केवल डॉक्टर की देखरेख और सलाह के अनुसार ही करें। किसी भी प्रकार की दवा का उपयोग स्वेच्छा से करने पर यदि कोई समस्या या हानि होती है, तो उसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी।

सावधानी और सही जानकारी ही अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है। दवाओं का सही उपयोग करें और स्वस्थ रहें।

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