अपराजिता
[18:04, 1/25/2025] Dr.ADI-M: भारत को केवल एक देश या देश की धरती के रूप में ही नहीं, बल्कि स्वर्ग भूमि के रूप में भी जाना-माना जाता है। भारत की भूमि को ही केवल यह विशेषता प्राप्त हुई कि आध्यात्म का जन्म, पालन तथा पूर्णता केवल यहीं पर हुई है और आप जानते हैं कि आध्यात्म का तथा स्वर्ग का परस्पर कितना अटूट सम्बंध है।
भारत की धरती में ही केवल स्वर्ग भूमि वाली विशेषताएँ प्रबलता से पाई जाती हैं इसी कारण भारत की स्वर्गीय भूमि पर विभिन्न भाँति की चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ भी पाई जाती हैं।
यह एक लता जातीय बूटी है जो कि वन-उपवनों में विभिन्न वृक्षों या तारों के सहारे ऊर्ध्वगामी होकर सदा हरी-भरी रहती है। यह लता भारत के समस्त भागों में बहुलता से पाई जाती है और इसकी विशेष उपयोगिता बंगाल में दुर्गा देवी तथा काली देवी की पूजा के अवसर पर स्पष्ट दर्शित होती है।
भारत के विशेष पर्व नवरात्र के शुभ अवसर पर गोपनीय पूजा मैं नौ वृक्षों की टहनियों की पूजा की जाती है। इन नौ वृक्षों में एक अपराजिता भी है ।
अपराजिता के ऊपर बहुत ही सोन्दर्यमयी पुष्प अधिकांश खिले रहते हैं, अतः इसे पुष्प प्रेमी अपने घरों के योगन या दरवाजों पर चढ़ा लेते हैं। गर्मी के केवल कुछ दिवस व्यय करके शेष पूरे वर्ष भर यह लता पुष्पों से श्रृंगार किए रहती है।
[18:05, 1/25/2025] Dr.ADI-M: अपराजिता पुष्प भेद के कारण दो प्रकार की होती है,
(१) नोले पुष्प वाली तथा (२) श्वेत पुष्प वालो ।
नीले पुष्प वाली लता को ‘कृष्ण कान्ता’ और श्वेत पुष्प वाली लता को विष्णु कान्ता’ कहते हैं। मुख्यतया दोनों को हो अपराजिता कहा जाता है।
इसके पत्ते वनमूग की भांति आकार में कुछ बड़े होते हैं। प्रत्येक शाखा से निकलने वाली प्रत्येक सींक पर पाँच या सात पत्ते दिखाई देते हैं।
अपराजिता का पुष्प सीप की भाँति आगे की तरफ गोला- कार होते हुए पीछे की तरफ संकुचित होता चला जाता है। पुष्प के मध्य में एक और पुष्प होता है जो कि स्त्री को योनि की भांति होता है। सम्भवतः इसी कारण शास्त्रों इसे भग पुष्पी तथा योनि पुष्पा का नाम दिया गया है। नीले फूल वाली भग पुष्पा के भी दो भेद हैं जो कि ऊपर वर्णित के अलावा केवल इकहरा पुष्प ही होता है।
इसकी जड़ धारण करने से भूत-प्रेतादि की समस्या का निवारण होकर समस्त ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं।
इसके प्रयोग निम्नलिखित हैं :-
सुगम प्रसव
प्रसव के समय कष्ट से तड़पती या मरणासन्न हुई गर्भश्ता स्त्री की कटि में श्वेत अपराजिता की लता लाकर लपेट देने से कष्ट का समापन हो जाता है और प्रसव में सुगमता हो जाती है ।

वृश्चिक वंश
जब बिच्छू काट ले तो दंशित स्थल पर ऊपर से नीचे की तरफ श्वेत अपराजिता की जड़ को रगड़ें और उसी तरफ बाले
